राजस्थान के किसानों के लिए बांस की खेती नए अवसर लेकर आई है. पारंपरिक फसलों धान और गेहूं की तुलना में बांस की खेती न केवल अधिक लाभदायक साबित हो रही है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी कई लाभ प्रदान कर रही है.
क्यों बढ़ रहा है बांस की खेती की ओर रुझान?
कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर में तैनात कृषि विशेषज्ञ डॉ. एनपी गुप्ता के अनुसार बांस की खेती करने से किसानों को धान और गेहूं की खेती के मुकाबले चार गुना अधिक मुनाफा हो सकता है. बांस की फसल एक बार लगाने के बाद 40-50 साल तक चल सकती है जिससे बार-बार बुवाई की जरूरत नहीं पड़ती. यह खराब भूमि में भी उगाई जा सकती है और इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है.
पर्यावरणीय लाभ और सामाजिक महत्व
बांस न केवल तेजी से बढ़ता है बल्कि यह कार्बन डाइऑक्साइड को भी अधिक मात्रा में अवशोषित करता है जिससे यह पर्यावरण के लिए अत्यंत लाभकारी है. इसके अलावा बांस की खेती मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करती है और भू-क्षरण को रोकती है. यह जल-संकट वाले क्षेत्रों के लिए एक बढ़िया फसल है.
बांस की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
बांस की खेती के लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. जल निकासी की अच्छी व्यवस्था वाली भूमि में इसकी पैदावार अधिक होती है. इसे वैज्ञानिक तरीके से उगाने पर बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं.
बांस की रोपाई और देखभाल
बांस के पौधों को मानसून के दौरान लगाना चाहिए जब मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होती है. नर्सरी में तैयार पौधों को 8 से 10 महीने के बाद मुख्य खेत में लगाया जाता है. शुरुआती 2 से 3 साल तक पौधों को नियमित सिंचाई और जैविक खाद की जरूरत होती है.
सरकारी सहायता और सब्सिडी
राजस्थान सरकार द्वारा बांस की खेती करने वाले किसानों को विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी के माध्यम से सहायता प्रदान की जा रही है. इससे किसानों को अपनी खेती को और अधिक लाभकारी बनाने में मदद मिल रही है.