सरसों की खेती भारत में व्यापक रूप से की जाती है, जिसमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और गुजरात प्रमुख हैं। इसके तेल की भारत में बड़ी मांग है। अक्सर किसानों को इसकी बुवाई और उत्पादन की चिंता सताती रहती है। लेकिन अब उनके लिए एक अच्छी खबर आई है।
नई प्रजाति ‘गोवर्धन’ का परिचय
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 11 वर्षों के अथक शोध के बाद सरसों की एक नई किस्म ‘गोवर्धन’ विकसित की है। इस नई किस्म से न केवल बुवाई का समय कम होगा बल्कि उत्पादन भी बढ़ेगा। इस किस्म को नवंबर के अंतिम सप्ताह तक बोया जा सकता है जिससे किसानों को विशेष तौर पर समय की बचत होगी।
तेजी से तैयार होने वाली फसल
डॉ. पीके सिंह के अनुसार ‘गोवर्धन’ प्रजाति 120 से 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसमें 39% तेल की प्राप्ति होती है जो कि सामान्य किस्मों से कहीं अधिक है। यह विशेषता किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी क्योंकि अधिक तेल सामग्री का मतलब है बेहतर बाजार मूल्य और अधिक आय।
कीट प्रतिरोधी गुण
इस नई किस्म की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह कीट प्रतिरोधी है। माहू कीट और अन्य कई प्रकार के कीटों से फसल को होने वाले नुकसान को यह कम करता है। इससे फसल की सुरक्षा में बढ़ोतरी होती है और उत्पादन में किसी भी तरह की कमी की संभावना नहीं रहती। किसान जब नवंबर के अंत में बुवाई करेंगे तो फसल पूर्ण रूप से विकसित होने तक कीटों का सीजन समाप्त हो चुका होगा जिससे कीट लगने का खतरा न के बराबर हो जाता है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान
इस नई किस्म की घोषणा ने भारतीय कृषि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दिलाई है। इसके उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ही यह विदेशी बाजारों में भी अपनी मांग बनाने में सफल हो सकती है। अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता के कारण यह भारतीय किसानों के लिए एक आशाजनक भविष्य की उम्मीद करती है।