पंजाब और हरियाणा में इस साल मानसून का आगमन तो हो चुका है लेकिन उसका असर काफी कमजोर पड़ता जा रहा है। मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार आमतौर पर जून के मध्य में आने वाले मानसूनी हवाएं इस बार उम्मीद से कम सक्रिय हैं। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाली नमी युक्त हवाएं जिस तरह से राज्य में पहुंचनी चाहिए वैसा नहीं हो पा रहा है। इसकी प्रमुख वजह ऊपरी वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन और ला नीना प्रभाव का असामान्य रूप से सक्रिय न हो पाना है।
वर्षा की वास्तविक स्थिति
जुलाई के मध्य तक पंजाब में मात्र 179.7 मिमी और हरियाणा में 81.7 मिमी वर्षा हुई है, जो कि सामान्य से क्रमश: 50.8% और 37% कम है। इस कमी का असर स्थानीय कृषि और जल संचयन प्रणालियों पर पड़ रहा है। स्थानीय बादलों की वजह से हल्की फुल्की बारिश तो हो रही है लेकिन उससे किसानों और जल संचयन प्रणालियों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
गर्मी का बढ़ता प्रकोप
वर्षा की कमी के साथ-साथ तापमान में बढ़ोतरी भी एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। बठिंडा में तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है जो कि सामान्य से 5 डिग्री अधिक है। इस गर्मी के प्रभाव से न केवल मानव जीवन पर असर पड़ रहा है बल्कि कृषि उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
हिमाचल प्रदेश की चिंताजनक स्थिति
हिमाचल प्रदेश में भी बारिश की कमी चिंता का विषय बनी हुई है। मंडी को छोड़कर अधिकांश जिलों में बारिश कम हो रही है और वहां की स्थिति भी पंजाब और हरियाणा जैसी ही है। हालांकि वायु में नमी का प्रतिशत बढ़ रहा है जिससे कुछ हद तक तापमान में बढ़ोतरी हुई है।